2044 काल भैरव जयंती तारीख व समय भारतीय समय अनुसार, 2044 काल भैरव जयंती हिंदी कैलेंडर, 2044 में काल भैरव जयंती त्यौहार के सभी तारीख व समय, पूजा विधि, काल भैरव जयंती पूजा मंत्र।
काल भैरव जयंती विनाश से जुड़े भगवान शिव के भयंकर अभिव्यक्ति की जयंती है। काल भैरव जयंती भक्त भगवान काल भैरव के साथ शिव और पार्वती के साथ फलों, फूलों और मिठाइयों के साथ पूजा करते हैं। यह त्यौहार हिन्दू कैलेंडर में कार्तिक के कृष्णा पक्ष महीने के आठवें चंद्र दिन पर पड़ता है। इस दिन व्यक्ति को पूरे दिन उपवास रखते है। इस त्यौहार को काल भैरव अष्टमी भी कहा जाता है। इस दिन भगवान काल भैरव के मंदिरों में विशेष अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं। इस दिन व्यक्ति को पूरे दिन उपवास रखते है।
इस साल काल भैरव जयंती के तरीख :
काल भैरव जयंती को काल भैरव अष्टमी भी कहा जाता है। इस दिन भगवान काल भैरव के मंदिरों में विशेष अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं। भगवान काल भैरव तंत्र विद्या के देवता भी माने जाते हैं यही कारण हैं कि तांत्रिक काल भैरव की उपासना करते हैं। मान्यता के अनुसार इनकी उपासना रात्रि में की जाती है। रात भर जागरण कर भगवान शिव, माता पार्वती एवं भगवान कालभैरव की पूजा की जाती है। काल भैरव के वाहन काले कुत्ते की भी पूजा होती है। कुत्ते को विभिन्न प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। पूजा के समय काल भैरव की कथा भी सुनी या पढ़ी जाती है। अगले दिन प्रात:काल पवित्र नदी अथवा किसी तीर्थ स्थल में नहाकर श्राद्ध व तर्पण भी किया जाता है। इसके बाद भैरव को राख अर्पित की जाती है। मान्यता है कि भैरव की पूजा करने वाला निर्भय हो जाता है। उसे किसी से भी डरने की आवश्यकता नहीं होती। उसके समस्त कष्ट बाबा भैरव हर लेते हैं।

इस साल काल भैरव जयंती के तरीख :
12 नवंबर 2044
शनिवार
काल भैरव जयंती को काल भैरव अष्टमी भी कहा जाता है। इस दिन भगवान काल भैरव के मंदिरों में विशेष अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं। भगवान काल भैरव तंत्र विद्या के देवता भी माने जाते हैं यही कारण हैं कि तांत्रिक काल भैरव की उपासना करते हैं। मान्यता के अनुसार इनकी उपासना रात्रि में की जाती है। रात भर जागरण कर भगवान शिव, माता पार्वती एवं भगवान कालभैरव की पूजा की जाती है। काल भैरव के वाहन काले कुत्ते की भी पूजा होती है। कुत्ते को विभिन्न प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। पूजा के समय काल भैरव की कथा भी सुनी या पढ़ी जाती है। अगले दिन प्रात:काल पवित्र नदी अथवा किसी तीर्थ स्थल में नहाकर श्राद्ध व तर्पण भी किया जाता है। इसके बाद भैरव को राख अर्पित की जाती है। मान्यता है कि भैरव की पूजा करने वाला निर्भय हो जाता है। उसे किसी से भी डरने की आवश्यकता नहीं होती। उसके समस्त कष्ट बाबा भैरव हर लेते हैं।